एशिया के सबसे बड़े बायोमिथेनाइजेशन प्लांट का लोकार्पण आज
एशिया के सबसे बड़े बायोमिथेनाइजेशन प्लांट का लोकार्पण आज:गोबर-धन; गीले कचरे से 550 टन बायो सीएनजी रोज बनेगी
इंदौर शनिवार को फिर एक इतिहास रचने जा रहा है। एशिया के सबसे बड़े बायो सीएनजी प्लांट का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 12 बजे वर्चुअली लोकार्पण करेंगे। 8 साल पहले जिस स्थान पर 15 लाख मीट्रिक टन कचरे के पहाड़ थे, अब वहां कचरा प्रोसेसिंग इंडस्ट्री लग चुकी है।
100 एकड़ में फैले ट्रेंचिंग ग्राउंड का नया नाम अब वेस्ट प्रोसेसिंग इंडस्ट्री एरिया होगा। लोकार्पण के लिए देवगुराड़िया में होने वाले स्थानीय कार्यक्रम में राज्यपाल मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री हरदीपसिंह पुरी, राज्य मंत्री कौशल किशोर, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, मंत्री तुलसी सिलावट, उषा ठाकुर शामिल होंगे।
18000 यूनिट बिजली लगेगी रोजाना जल्द सौर ऊर्जा से चलाएंगे पूरा प्लांट
बायो सीएनजी प्लांट लगाने वाली कंपनी के दीपक अग्रवाल बताते हैं कि प्लांट के लिए हर दिन 18 हजार यूनिट बिजली लगेगी। अभी शुरुआत में 20 प्रतिशत पॉवर सौर ऊर्जा से लेंगे। इसके लिए प्लांट के ऊपर ही सौर पैनल लगेगी। एक से डेढ़ साल में हम इसे पूरी तरह सौर ऊर्जा से चलाएंगे।
400 सिटी बस चलाएंगे नए प्लांट से मिलने वाली बायो सीएनजी से
कलेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि प्लांट की तीन बड़ी विशेषता है – यहां गीले कचरे से बायो सीएनजी बन रही है। सौर ऊर्जा उपयोग होगी और फिर उसी गैस से करीब 400 सिटी बसें चलाएंगे। कंपनी को इसके लिए 40 से 45 लाख की बिजली लगेगी। हम ग्राउंड की पेरीफेरी में सोलर प्लांट के लिए जगह उपलब्ध करवाएंगे।
दो छोटे प्लांट पहले से शहर में बना रहे सीएनजी, स्लज हाइजिनेशन प्लांट भी
चोइथराम सब्जी मंडी में 20 और कबीटखेड़ी में 15 मैट्रिक टन बायो-सीएनजी प्लांट लगे हैं। जहां से 1400 से 1600 किलाे बायो-सीएनजी बनाई जा रही है। निगमायुक्त प्रतिभा पाल के अनुसार, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की मदद से देश का दूसरा स्लज हाइजिनेशन प्लांट भी बनाया गया है।
शहर में कचरे के हर हिस्से को रिसाइकल कर बना रहे उत्पाद
- पॉलीथिन : गट्टे बनते हैं। इन्हीं गट्टों से फिर सिंचाई के पाइप तैयार होते हैं।
- पानी की बॉटल : प्लास्टिक दाना बनता है, जिनसे कैरी बैग, बॉटल, मग, डस्टबिन, बाल्टी, कुर्सी, बेंच बनाते हैं।
- प्लास्टिक रैपर : सीमेंट इंडस्ट्री फ्यूल के रूप में उपयोग करती है। डस्टबिन, कुर्सियां, गमले भी बन रहे हैं। 4. पेपर : झोले, कैरी बैग बना रहे।
- लोहा : गलाकर लोहा, म्यूरल्स भी बनाए, कुर्सियां और डिवाइडर के रूप में भी यही लोहा उपयोग में लेते हैं। 6. गीला कचरा : खाद, सीएनजी, बायो गैस।
- जूते-चप्पल : गलाकर रीयूज होते हैं।
- टायर : कुर्सियां, गमले बना रहे। स्क्रैप बेचकर भी राशि कमा रहे।
- लकड़ी : सौंदर्यीकरण आइटम बना रहे।
- कांच : स्क्रैप कर कंपनियों को बेचते हैं।
ऐसे किया निपटारा
2015-16 में काम शुरू किया बायोरेमेडेशन पद्धति अपनाई। 300 टन प्रतिदिन की क्षमता का प्लांट लगाया। 2016-17 में डेढ़ लाख व 2017-18 में करीब 50 हजार मीट्रिक टन कचरे का निपटारा कर वहां पौधारोपण किया गया।
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