मखाना पर किए गए शोध के लिए वैज्ञानिक प्रो डॉ एस एस एन सिन्हा को मिला प्रधानमंत्री अवार्ड
प्रो. डॉ. एस एस एन सिन्हा
को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भेजा गया प्रशस्ति पत्र
दरभंगा। मखाना के क्षेत्र में उत्कृष्ट शोध करने के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. डॉ. एस एस एन सिन्हा को प्रधानमंत्री पुरस्कार 2021 देकर सम्मानित किया है।
जिलाधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हस्ताक्षरित प्रशस्ति पत्र डॉक्टर सिन्हा को प्राप्त हुआ है। लोक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार 2021 एक जिला एक उत्पाद स्कीम के माध्यम से समग्र विकास हेतु मखाना की टीम को उत्कृष्ट क्रियान्वयन के लिए प्रदान किया गया है। इस टीम का नेतृत्व डॉ सिन्हा ने ही किया था।
शहर के बलभद्रपुर निवासी डॉ सिन्हा के नेतृत्व में वर्ल्ड बैंक के सहयोग से वर्ष 2000 से 2002 तक मखाना पर शोध किया गया था।
उस टीम की शोध रिपोर्ट पर ही दरभंगा में मखाना अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई थी। आज मखाना विश्व स्तर पर पहुंच चुका है। विश्व स्तर पर मखाना को मिली पहचान पर खुशी जाहिर करते हुए प्रो सिन्हा ने कहा कि शोध के दौरान हम लोगों ने पाया कि स्थानीय लोगों को भी मखाना के उत्पादन के बारे में जानकारी नहीं है।
शोध के दौरान पाया कि जहां मिट्टी में जिंक की मात्रा अधिक होती है वहां मखाना का उत्पादन अधिक हो रहा है। जहां कैल्शियम अधिक मिलता है वहां मखाना की खेती नहीं होती है।
दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया अररिया आदि जिलों की मिट्टी मे जिंक की मात्रा अधिक है इसलिए यहां मखाना की खेती हो रही है। जबकि पड़ोसी जिले समस्तीपुर की मिट्टी में जिंक से अधिक कैल्शियम की मात्रा है इसलिए वहां मखाना की खेती नहीं हो पा रही है। मधुबनी की मिट्टी में सबसे अधिक जिंक मिला जहां का मखाना काफी अच्छा और खाने में ज्यादा मुलायम होता है।
संस्कृत के विद्वानों से जब मखाना का अर्थ पूछा तो उन्होंने बताया कि मख का अर्थ यज्ञ होता है अर्थात यज्ञ में उपयोग करने के लिए लोगों ने इसका नाम मखाना रख दिया। इसका उपयोग पूजा आदि में होने लगा इसलिए मखाना का उत्पादन बंद नहीं हुआ। शोध के दौरान ही यह पता चला कि विश्व में मखाना का उत्पत्ति जापान में जमीन पर उगने वाले पौधे के रूप में हुई।
जापान के बाद यह पानी में उगने वाला पौधा बन गया। जापान से साउथ चीन, नॉर्थ असम, नॉर्थ बंगाल होते हुए यह मिथिला क्षेत्र में पहुंचा।
मखाना के लिए विश्व में इस क्षेत्र से बेहतर जगह और कहीं नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि मखाना का उत्पादन सिर्फ छोटे-छोटे डबरा, छोटे तालाब में ही किया जा सकता है। बड़े तालाब, नदी में मखाना का उत्पादन संभव नहीं है। लेकिन जिस तरह छोटे-छोटे तालाबों को भरने का काम किया जा रहा है उससे 2050 तक मखाना विलुप्त होने के कगार पर आ जाएगा। मखाना की खेती के लिए पर्याप्त जल की भी आवश्यकता होती है।
जिस साल पानी कम बरसता है उस साल मखाना की खेती बर्बाद हो जाती है जिससे मखाना की खेती करने वाले किसानों को काफी नुकसान होता है और वह कर्ज के नीचे दब जाते हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसी स्थिति में मखाना की खेती करने वाले किसानों को अनुदान दे ताकि मखाना की खेती करने के प्रति उनका उत्साह बरकरार रहे।
साथ ही शोध के दौरान उन लोगों ने पाया कि मखाना उत्पादन के दौरान गंदे पानी मे घंटों रहने के कारण किसानों को स्किन से जुड़े विभिन्न तरह की समस्या होती है जिसके लिए आवश्यकता है कि समय-समय पर उनका जांच किया जाए और उन्हें संभावित बीमारियों से बचाया जाए।
सरकार को इन सभी विषयों पर अभी से ध्यान देना होगा, अन्यथा मखाना धीरे धीरे विलुप्त होती जाएगी।
प्रोफ़ेसर सिंह ने कहा कि मुझे खुशी है कि मेरे मेरे द्वारा किए गए शोध को सेंट्रल गवर्नमेंट ने सराहा और प्रधानमंत्री ने एक प्रशस्ति पत्र मेरी टीम को दिया है।
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