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उत्तराखण्ड

जोशीमठ अब और दबाव नहीं झेल सकता, ‘मनमाने कंस्ट्रक्शन ने बढ़ाया इलाके में …

जोशीमठ अब और दबाव नहीं झेल सकता, ‘मनमाने कंस्ट्रक्शन ने बढ़ाया इलाके में …’ भूवैज्ञानिक ने दी ये चेतावनी

जोशीमठ. उत्तराखंड के जोशीमठ इलाके में सैकड़ों घर ढहने के कगार पर हैं. इमारतों की दीवारों और सड़कों में खतरनाक दरारें चौड़ी होती जा रही हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में पानी बह रहा है. बहरहाल भूवैज्ञानिकों (Geologist) का कहना है कि हिमालय में बसे जोशीमठ शहर में ये आपदा कई साल पहले से लगातार बनी हुई है और इसके और बदतर होने की आशंका है.

प्रसिद्ध भूविज्ञानी और देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology) के निदेशक डॉ. कलाचंद सेन का कहना है कि जोशीमठ के धंसाव वाले इलाके में जमीन का डूबना बहुत पहले शुरू हो गया था और अभी भी चल रहा है.

डॉ. कलाचंद सेन ने कहा कि जोशीमठ शहर एक पुराने भूस्खलन (landslides) के मलबे पर बनाया गया था. यह भूकंप के उच्चतम जोखिम के साथ भूकंपीय क्षेत्र 5 (Seismic Zone 5) में भी आता है और भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील है. इस प्रमुख संस्थान ने 2021 की उस स्टडी का नेतृत्व किया, जिसमें इस इलाके की अत्यधिक कमजोरी को बताया गया.

जिसकी भूवैज्ञानिक नींव की मजबूती हमेशा सवालों के घेरे में रही है. यूरेशियन प्लेट के तहत भारतीय प्लेट के निरंतर टूटने के कारण न केवल ये इलाका टेक्टोनिक रूप से सबसे ज्यादा एक्टिव है, बल्कि ये मानव गतिविधियों के बढ़ते दबाव के कारण भी तेजी से अस्थिर होता जा रहा है.

बहुत ज्यादा निर्माण

चमोली जिले में लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित कस्बे के बारे में भूविज्ञानी डॉ. कलाचंद सेन ने कहा कि ‘यहां बहुत सारी निर्माण गतिविधि हो रही है. सरकार द्वारा बनाई गई मिश्रा समिति द्वारा 1976 में जारी कड़ी चेतावनी के बावजूद पर्यटन उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए इलाके में कई होटल, रेस्तरां, भवन और सड़कें बनाई गई हैं.

खराब जल निकासी सिस्टम ने पानी के प्राकृतिक प्रवाह को और बाधित कर दिया है, जिससे यह उन जगहों से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो गया है, जहां से इसे नहीं आना चाहिए. डॉ. सेन ने कहा कि हमें पानी को उसके प्राकृतिक तरीके से बहने देना है. पूरी जल निकासी प्रणाली को फिर से बनाना होगा.

पिछले साल की अचानक आई बाढ़ के बावजूद, जिले में नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) की 510 मेगावाट की तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना का निर्माण भी चल रहा है. भूविज्ञानी डॉ. कलाचंद सेन ने कहा कि बहरहाल ये साफ नहीं कहा जा सकता है कि क्या दरारें एक परियोजना के निर्माण के कारण हुईं. लेकिन हम इससे इंकार भी नहीं कर सकते. अगर पहाड़ी इलाकों में चट्टानों को विस्फोट किया जाता है, तो वे नुकसान पहुंचा सकते हैं और धंसाव का कारण बन सकते हैं.

अस्थिर नींव, चौड़ा नदी चैनल

पिछले कुछ साल में भूवैज्ञानिकों ने यह भी देखा है कि कैसे नदियों और ‘नालों’ का प्राकृतिक प्रवाह ऊपर की ओर बाधित हो रहा है. नदियां भी अपने चैनलों को चौड़ा कर रही हैं और वे नीचे की ओर बहती हैं और चट्टानों का कटाव करती हैं.

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के असर तेज होते जा रहे हैं, हिमालयी क्षेत्र में इस तरह की और आपदाएं आने की संभावना है. डूबते जोशीमठ के लिए यह आने वाले कठिन समय का संकेत है.

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