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संत कवि कबीर एवं जन कवि नागार्जुन की जयंती के अवसर पर …

संत कवि कबीर एवं जन कवि नागार्जुन की जयंती के अवसर पर विश्विद्यालय हिंदी विभाग के तत्वावधान में ‘कबीर और नागार्जुन की सामाजिक चेतना’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय सभागार में किया गया।

इस अवसर पर कुलपति महोदय ने केंद्रीय पुस्तकालय में स्थापित बाबा नागार्जुन की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। साथ ही कुलसचिव प्रो.मुश्ताक़ अहमद, मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. रमण झा, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो० राजेन्द्र साह, हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो० चन्द्रभानु प्रसाद सिंह, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक डॉ.अशोक मेहता आदि गणमान्य अतिथियों ने भी नागार्जुन की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
इस अवसर पर माननीय कुलपति प्रो० सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि यह संगोष्ठी इसलिए भी बहुत लाभकारी है क्योंकि वर्ग में छात्र जहाँ एक शिक्षक से पढ़ते हैं वहीं ऐसी संगोष्ठियों में तमाम तरह के मतों-दर्शनों से वे रूबरू होते हैं। कबीर और नागार्जुन की व्यंग्यात्मक शैली पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि व्यंग्यात्मक लहजा जन सामान्य तक बहुत तीव्र गति से सम्प्रेषित होता है,साथ ही व्यंग्य हृदय में बस जाता है। दोनों ही कवियों के विषय में उन्होंने कहा कि वे कवि से ज्यादा समाज सुधारक थे।

अपने भीतर का ‘फकीर’ जीवित रखने का फायदा बताते हुए उन्होंने कहा कि जबतक व्यक्ति के भीतर का फकीर जीवित है तबतक सच के लिए इंसान खड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि बहती गंगा की धारा के साथ बहना आसान है लेकिन उस धारा के विपरीत तैरना तथा उस धारा को नकारना सबके बस की बात नहीं है। जो सच के पक्ष में खड़ा होगा,वही ऐसा कर सकेगा। कबीर और नागार्जुन सच के पक्ष में खड़े थे, इसलिए ऐसा कर सके। उन्होंने कहा कि ‘नागार्जुन चेयर’ के लिए विस्तृत प्रोपोजल आने पर सकारात्मक प्रयास किये जायेंगे।साथ ही अगले वर्ष से कबीर और नागार्जुन की जयंती हिंदी, मैथिली और उर्दू विभाग के तत्त्वावधान में आयोजित की जाएगी।

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इस अवसर पर कुलसचिव प्रो० मुश्ताक अहमद ने कहा कि हिंदी विभाग नित्य कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। कबीर जिस काल के कवि हैं उस काल में सारे कवि भगवान की तलाश में थे लेकिन उस दौर में कबीर एकमात्र ऐसे कवि थे जो मानव में भगवान देखते थे। उन्होंने कबीर को अमीर खुसरो की परंपरा को गति देनेवाला कवि बताया। कबीर ने लोकवाणी को साहित्य वाणी के रूप में स्थापित किया। लोकभाषा में रचना करने की शुरुआत जहाँ खुसरो ने की,वहीं उसे बढ़ाने का काम कबीर करते हैं। आधुनिक काल में कवि नागार्जुन,कबीर की ही तरह बागी तेवरों के साथ उपस्थित होते हैं और इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं।नागार्जुन समझौतावादी कभी नहीं रहे। उन्होंने कहा कि दोनों महान साहित्यकारों पर बात करना इतने अल्प समय में आसान नहीं है, इनपर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए। आज जब साहित्य में भी अवसरवादिता चरम पर है,ऐसे में कबीर और नागार्जुन और ज्यादा प्रासंगिक हो जाते हैं। सत्ता के विरोध में ऐसे इंकलाबी साहित्यकारों ने जो रचनाएँ कीं उनसे प्रेरणा लेना आवश्यक है।
बीज वक्ता प्रो० चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने इस अवसर पर कहा कि आज से छह सौ वर्ष पहले कबीरदास हुए और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में नागार्जुन का जन्म हुआ था। कबीर ने धार्मिक प्रतीकों को केंद्र में रख कर सामाजिक क्रांति की बात की वहीं नागार्जुन ने राजनीति को केंद्र में रखकर मार्क्सवादी चेतना से ओतप्रोत रचनाएँ करके राजनीतिक क्रांति का बिगुल बजाया। दोनों ने समाज की कुरीतियों पर प्रहार किया। नागार्जुन ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मण समाज में इतने उपेक्षित हुए कि उन्होंने बौद्धधर्म अपना लिया। कबीर आज इसलिए प्रासंगिक हैं क्योंकि वे हर गलत बात के खिलाफ खड़े थे। अगर वे हिंदुओं की कुरीतियों पर प्रहार करते हैं तो मुसलमानों के पाखंड पर भी चोट करते हैं। उनके व्यंग्य की मारकता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रसिद्ध आलोचक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी कहते हैं कि उनके व्यंग्य को काटने की हिम्मत किसी में नहीं थी। कबीर और नागार्जुन ने केवल बौद्धिक विलास के लिए रचनाएँ नहीं कीं, अपितु वे अपने जीवन यथार्थ को चित्रित करते हैं। नागार्जुन किसान आंदोलनों से भी जुड़े रहे। दरभंगा जिला किसान सभा के अध्यक्ष रहते हुए नागार्जुन ने कई विशिष्ट कार्य किये। नागार्जुन इस प्रकार के क्रांतिकारी कवि थे कि जिन्होंने सरकार के विरोध में पद्मश्री तक लौटा दी थी।उन्होंने कहा कि यह हम सब के लिए गौरव की बात है कि नागार्जुन इसी मिथिला की महान धरती के सपूत थे। उन्होंने कुलपति महोदय और कुलसचिव महोदय से आग्रह किया कि हिंदी विभाग में नागार्जुन चेयर की स्थापना करने की दिशा में प्रयास करने की कृपा करें।
इस अवसर पर स्वागताध्यक्ष प्रो० राजेन्द्र साह ने सभी विद्वान अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस संगोष्ठी की महत्ता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि माननीय कुलपति इस कार्यक्रम में उपस्थित हैं। वस्तुतः यह कुलपति महोदय का विश्वविद्यालय के प्रति समर्पण है जो वे हर कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। उन्होंने कहा कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन कबीर की जयंती मनाई जाती है,उन्हीं की परंपरा में जनकवि नागार्जुन भी आते हैं। वे भी अपनी जन्मतिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा ही मानते थे इसीलिए आज उनकी जयंती मनाई जा रही है। विषय- प्रवर्तन करते हुए प्रो०साह ने कहा कि कबीर और नागार्जुन ऐसे क्रांतिदर्शी कवि थे जो समाज को परिवर्तित करने की क्षमता रखते थे। मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए ये दोनों महान कवि जीवनपर्यंत संघर्षरत रहे। कबीर और नागार्जुन युगद्रष्टा एवं युग की सृष्टि करनेवाले रचनाकार थे। किसी कवि की सफलता का पैमाना इस बात से तय किया जा सकता है कि वह कितने लोगों को अपनी कविता से आंदोलित करता है। नागार्जुन और कबीर के अनुयायियों की संख्या देखकर यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि उन्होंने एक बड़े वर्ग को आंदोलित किया। कबीर ने आत्मा की शुद्धता पर बल दिया।
‘आतमज्ञान बिना सब सूना,क्या मथुरा क्या काशी’।
अन्तरसाधना पर बल देनेवाले महान कवि कबीर ने कहा कि मन मथुरा है,दिल द्वारिका है और काया ही काशी है। जो कुछ भी है,वह हृदय के भीतर ही है।इसीलिए वे बार-बार प्रेम की बात करते हैं। बाह्याडम्बर पर उन्होंने बार-बार प्रहार किया। आज सैकड़ों वर्षों बाद भी कबीर की वाणी अकाट्य है क्योंकि उनकी बानियों के पीछे जीवन का उद्दात्त दर्शन छिपा है। अपनी बात को विराम देते हुए उन्होंने कबीर की इस बात को उद्घाटित किया कि आज भी सच बोलने पर लोग मारने के लिए दौड़ते हैं और झूठ को महिमामंडित करते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि कबीर एकमात्र ऐसे कवि हैं जिन्होंने गुरु की महिमा का गानकर जन सामान्य को यह संदेश दिया कि गुरु कृपा के बिना सत्य ज्ञान सम्भव नहीं है।
विश्वविद्यालय के वित्त परामर्शी श्री कैलाश राम ने कहा कि कबीर फ़ारसी का शब्द है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ। न केवल सामाजिक-राजनीतिक क्रांति की बात उन्होंने की,बल्कि साधना की ऊँची अवस्था उनके काव्य में दिखती है। कबीर ने लोगों को कर्मकांड से दूर हटाने के लिए नए प्रयोग किये।
इस अवसर पर मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो० रमन झा ने कहा कि आज हम उन दो महान विभूतियों की जयंती मना रहे हैं जिनकी बानियाँ बच्चे-बच्चे की जबान पर रहती हैं। नागार्जुन के मैथिली प्रेम को केंद्र में रख कर उन्होंने कहा कि नागार्जुन की जयंती मनाने का दायित्व मैथिली विभाग को भी दिया जाना चाहिए।
इस अवसर पर मंच का संचालन हिंदी विभाग के सह प्राचार्य डॉ०आनन्द प्रकाश गुप्ता ने किया। भाषण और निबंध प्रतियोगिता में विजेता रहे छात्र-छात्राओं को कुलपति महोदय द्वारा प्रमाण पत्र दे कर सम्मानित किया गया। मौके पर कई विभागों के अध्यक्ष, यथा-उर्द विभागाध्यक्ष प्रो० आफताब अशरफ, अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो० अशोक कुमार बच्चन,प्रो०अरुण कुमार सिंह, शिक्षकगण,यथा-डा०अखिलेश कुमार, आनंद मोहन मिश्रा, शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राऍं उपस्थित रहे।


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