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लालू कथा: जानें कैसे जेपी आंदोलन से उभरे और छा गए, CM-रेलमंत्री से जेल की कोठरी तक की कहानी

लालू कथा: जानें कैसे जेपी आंदोलन से उभरे और छा गए, CM-रेलमंत्री से जेल की कोठरी तक की कहानी


कभी ‘गुदड़ी का लाल’ और ‘गरीबों का मसीहा’ जैसे नामों से पुकारे जाने वाले लालू प्रसाद के राजनीतिक सफर पर चारा घोटाले ने ब्रेक लगा दिया। अलबत्ता वे राजद सुप्रीमो बने रहे पर चुनावी राजनीति से 2009 के बाद से ही दूर चले गये। छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की थी।

जेपी आंदोलन में शामिल होने के बाद उनका राजनीतिक कद धीरे-धीरे बढ़ता गया। राजनीतिक व्यवस्था में अंतिम व्यक्ति को आगे करने की कोशिश में वे लगातार राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ते गए। लालू की राजनीतिक सफलता को कथित घोटाले के कारण ब्रेक लगा। हालांकि, उन्होंने अपनी पार्टी की कमान को हमेशा पकड़े रखा और धीरे-धीरे संसदीय राजनीति से दूर होते चले गए।

लालू ने 1980 में लोकसभा चुनाव में भी अपनी किस्मत आजमायी लेकिन चुनाव हारने के बाद उन्होंने हार नही मानी और राज्य की राजनीति में सक्रिय हो गए। वे उसी साल बिहार विधानसभा चुनाव में शामिल हुए और निर्वाचित होकर विधानसभा सदस्य बन गए। उन्होंने 1985 में दोबारा चुनाव जीता।

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पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद विपक्ष के कई वरीय नेताओं को दरकिनार करते हुए वे 1989 में विधानसभा में विरोधी दल के नेता बन गए। मगर उसी वर्ष उन्होंने फिर छपरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा में किस्मत आजमाई और सफल हो गए। अब 1989 के भागलपुर दंगे के बाद कांग्रेस के वोट बैंक के रूप में मानी जाने वाली यादव जाति के एक मात्र नेता लालू प्रसाद हो गए।

मुसलमानों का भी उन्हें व्यापक समर्थन था। तब वे वीपी सिंह के साथ हो लिए और मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने में लग गए। वर्ष 1998 में केंद्र की सरकार में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी आ गए। वहीं, वर्ष 2000 में राजद बिहार विधानसभा चुनाव में अल्पमत में आ गया। तब, नीतीश कुमार ने सीएम पद की शपथ ली लेकिन उन्होंने सात दिनों में ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पुन: राबड़ी देवी सीएम बनी।

दोबारा सत्ता में आते ही चारा घोटाला उजागर होने लगा

लालू प्रसाद के दोबारा सत्ता में आते ही चारा घोटाला उजागर होने लगा। कोर्ट के आदेश पर मामला सीबीआई को गया और सीबीआई ने 1997 में उनके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल कर दिया। उसके बाद लालू को सीएम पद से हटना पड़ा। उन्होंने राबड़ी देवी को सत्ता सौंपी और जेल चले गए। उसी अवधि में समर्थकों ने लालू प्रसाद को ‘बिहार के नेल्सन मंडेला’ तो विरोधियों ने ‘चारा चोर’ की उपाधि दे दी।

आडवाणी की रथयात्रा रोकी तो अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली

1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने। 23 सितंबर 1990 को उन्होंने राम रथयात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कराया और खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत किया। तब आडवाणी की गिरफ्तारी से लालू को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई।

उस दौरान पिछड़े समाज को राजनीति में हिस्सा दिलाने में उनकी महती भूमिका थी। उसी समय मंडल आयोग की सिफारिशें भी लागू हुईं और राज्य में अगड़े-पिछड़े की राजनीति चरम पर पहुंच गई। उसके बाद से लालू प्रसाद की पहचान एक सवर्ण विरोधी के रूप में हो गई। अतिपिछड़ा वर्ग ‘लालू का जिन्न’ बन गया।

लिहाजा 1995 में वह भारी बहुमत चुनाव जीते और राज्य में दोबारा सीएम बने। इसी दौरान जुलाई 1997 में शरद यादव से मतभेद होने के कारण उन्होंने जनता दल से अलग राष्ट्रीय जनता दल का गठन कर लिया।

वर्ष 1998 में केंद्र की सरकार में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी आ गए। वहीं, वर्ष 2000 में राजद बिहार विधानसभा चुनाव में अल्पमत में आ गया। तब, नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन उन्होंने सात दिनों में ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पुन: राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी।

उन्हें समर्थन देने वाले सभी 22 कांग्रेस विधायक उनकी सरकार में मंत्री बनें। लेकिन 2005 में राजद चुनाव हार गयी और पुन: बिहार की सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार ने संभाली। राज्य में लालू के हाथ से सत्ता दूर हो गयी। हालांकि, 2004 में किंगमेकर की भूमिका में रहे लालू यूपीए-वन सरकार में रेल मंत्री बनें।

2009 में लोकसभा चुनाव में राजद के मात्र चार सांसद निर्वाचित हुए इसलिए उनकी पार्टी को केंद्र में जगह नहीं मिली। पटना विवि छात्रसंघ (पुसू) के महासचिव के रूप में 1970 में लालू प्रसाद ने छात्र राजनीति में प्रवेश किया। वे 1973 में पुसू के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। बाद में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ 1974 में जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में हुए छात्र आंदोलन में शामिल हो गए।

छात्र आंदोलन के दौरान लालू कई वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में आए और 1977 के लोस चुनाव में छपरा संसदीय सीट से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में पहली बार संसद में प्रवेश कर गए। मात्र 29 साल की आयु में वह उस समय भारतीय संसद के सबसे युवा सदस्यों में थे। मगर, कुछ ही दिनों बाद 1980 के आम चुनाव में लालू चुनाव हार गए।

2009 में अंतिम बार चुनाव लड़े थे लालू 

2009 में अंतिम बार संसदीय राजनीति के तहत चुनाव में शामिल हुए। उन्होंने परिसीमन लागू होने के बाद पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र एवं छपरा संसदीय क्षेत्र से नामांकन पत्र दाखिल किया। पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर रंजन यादव ने लालू प्रसाद को चुनाव में हरा दिया। जबकि छपरा संसदीय क्षेत्र से लालू ने जीत हासिल की थी। चूंकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में राजद के मात्र चार सांसद निर्वाचित हुए इसलिए उनकी पार्टी को केंद्र की यूपीए- 2 सरकार में जगह नहीं मिली।

इसके बाद, लगभग 17 साल तक चले चारा घोटाले के मुकदमे में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने लालू प्रसाद को 3 अक्टूबर 2013 को पांच साल की कैद व 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। अनेक अवसरों पर लालू के लिए रक्षक बनने वाली कांग्रेस उन्हें नहीं बचा पायी। तब दागी जन प्रतिनिधियों को बचाने वाला अध्यादेश लंबित रह गया और लालू प्रसाद का राजनीतिक भविष्य अधर में चला गया।

स्रोत: “हिन्दुस्तान न्यूज़”


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