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दरभंगाबिहार

मिथिला विश्वविद्यालय शैक्षिक संघ तथा एजुकेशन सोल्यूशनशन फॉर यू, दरभंगा के द्वारा संगोष्ठी आयोजित

समाज के मार्गदर्शक शिक्षक, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की महत्ता को हर व्यक्ति तक पहुंचाएं- मंत्री जीवेश

गुण-दोषों के बावजूद सरकारी विद्यालयों के गांव-गांव में खुलने से शिक्षा का प्रसार तेजी से बढ़ रहा है- कुलपति

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय शैक्षिक संघ एवं एजुकेशन सॉल्यूशन फॉर यू, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में “स्वतंत्रता पूर्व एवं पश्चात् भारत में शिक्षा- व्यवस्था” विषयक संगोष्ठी सह “अटल शिक्षक सम्मान-2022 समारोह” का आयोजन संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में किया गया। मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर वाणिज्य विभागाध्यक्ष प्रो अजीत कुमार सिंह की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में बिहार सरकार के श्रम संसाधन एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री जीवेश कुमार- मुख्य अतिथि, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शशिनाथ झा- उद्घाटन कर्ता, हिन्दी साहित्य भारती के प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेश प्रसाद साह- मुख्य वक्ता, राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, बिहार प्रांत के महामंत्री डॉ अजीत कुमार चौधरी- सम्मानित अतिथि, ल ना मिथिला विश्वविद्यालय शैक्षिक संघ के महामंत्री डॉ आर एन चौरसिया- विषय प्रवर्तक, मिथिला विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर वाणिज्य विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो आई सी वर्मा तथा जेसस एंड मेरी एकैडमी, दरभंगा की प्रिंसिपल डा मधुरिमा सिन्हा- विशिष्ट अतिथि एवं कार्यक्रम के संयोजक ई. देव सिंह सहित प्रो श्रीपति त्रिपाठी, प्रो रेणुका सिन्हा, प्रो कुलानंद झा, तरुण मिश्र, डा अमित सिन्हा, संजीव कुमार, डा सतीश चंद्र भगत, डा विद्यानंद झा, डा आदित्य नारायण चौधरी, डा विन्दु चौहान, रश्मि शर्मा, डा आदर्श कुमार, डा विमलेन्दु शेखर पाठक, विवेकानंद पासवान, अमरनाथ, डा श्याम चंद्र गुप्ता व नीरज कुमार आदि उपस्थित थे।


अपने संबोधन में बिहार सरकार के श्रम संसाधन एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री जीवेश कुमार ने कहा कि शिक्षा में अन्य बातों के साथ ही नैतिक मूल्यों को शामिल होना चाहिए। यदि हम युवाओं में नैतिक मूल्य उत्पन्न कर दें तब ही शिक्षा सफल मानी जाएगी। पहले गुरु जहां सर्वांगीण शिक्षा देते थे, वहीं अब शिक्षक एक विषय की विशेषज्ञता की ही शिक्षा दे पाते हैं। भारतीय शिक्षा हुनर पर आधारित रही है, वहीं नई शिक्षा नीति देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच बनाने में सफल होगी। उन्होंने विशेष रूप से 2014 के बाद शिक्षा के विकास में केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा किए गए कार्यों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि यदि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मातृभाषा हिन्दी में तकनीकी शिक्षा उपलब्ध होती तो आज गरीब व्यक्तियों के बच्चे भी डॉक्टर व इंजीनियर जरूर बनते।

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मंत्री ने कहा कि समाज के मार्गदर्शक के रूप में शिक्षक नई शिक्षा नीति की महत्ता को हर व्यक्ति तक पहुंचाने का काम करें। उन्होंने कहा कि आज देश नई पहचान बना रहा है, जिसमें साक्षरता दर 75% से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि शिक्षक कभी अवकाश ग्रहण नहीं करता। उन्होंने शिक्षकों से अपील की कि वे नई शिक्षा नीति के प्रति जागरूकता हेतु इस तरह की संगोष्ठियों का लगातार आयोजन कर आमलोगों को जागरूक करें।
उद्घाटन संबोधन में कुलपति प्रो शशिनाथ झा ने कहा कि शिक्षा के बिना कोई सच्चा मनुष्य नहीं हो सकता है। हम पूरे जीवन काल सीखते रहते हैं। भारत में पहले व्यक्ति रोजी- रोजगार की हर विद्या अपने परिवार में ही सीखते थे, जबकि व्यवस्थित शिक्षा गुरुकुलों में दी जाती थी। स्वतंत्रता के बाद सरकारी स्कूलों एवं कान्वेंटों में भी शिक्षा दी जाती है, पर गांव- गांव में विद्यालय खुलने से अब शिक्षा जन-जन तक पहुंच रही है तथा शिक्षा का प्रसार ज्यादा से ज्यादा हो रहा है। आज शिक्षा वैश्विक रूप ले रही है और लोग विदेश भी जाते हैं, जबकि विदेशों से लोग भी यहां आकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
मुख्य वक्ता के रूप में हिन्दी साहित्य भारती के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉ दिनेश प्रसाद साह ने कहा कि संगोष्ठी का विषय महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक हैं। शिक्षा हमारी ज्ञान चक्षु को खोलती है, जिसका भारतीय संस्कृति के प्रचार- प्रसार में काफी योगदान रहा है। नई शिक्षा नीति- 2020 भारत में 36 वर्षों के बाद आयी है, जिसमें रोजी- रोजगार व तकनीकी शिक्षा के साथ ही नीतिगत बातों का ध्यान रखा गया है। यह पूरी तरह समाज एवं छात्रों के हित में है। इसपर कुल जीडीपी का 6% राशि व्यय करने का लक्ष्य रखा गया है।
विषय प्रवेश कराते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय शैक्षिक संघ के महामंत्री डा आर एन चौरसिया ने कहा कि शिक्षा हमारी सभी सफलताओं की मूल कुंजी है जो मानवीय विकास एवं खुशहाली की रीढ है। स्वास्थ शिक्षा व्यवस्था से ही कुशल, संस्कारित एवं राष्ट्रभक्त युवा पीढ़ी का निर्माण संभव है।

स्वतंत्रता के पूर्व 19 वीं सदी के मध्य तक भारत में कमोवेश गुरुकुल शिक्षा- पद्धति चली आ रही थी, पर लॉर्ड मैकाले द्वारा 1835 ईस्वी में अंग्रेजी शिक्षा के प्रचलन से प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था का अंत हो गया और कन्वेंट व पब्लिक स्कूल खोले जाने लगे, जिससे संस्कृति, संस्कार और मानव मूल्य से रहित मशीनी मानव या क्लर्क पैदा होना प्रारंभ हुआ, परंतु स्वतंत्रता के बाद भारतीय शिक्षा के विकास में नए युग की शुरुआत हुई। आज सब को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने आशा व्यक्त किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 शिक्षा- व्यवस्था के विकास की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डा मधुरिमा सिन्हा ने कहा कि प्राचीन भारत की गुरुकुल प्रणाली सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। शिक्षा हमारा मार्गदर्शन करती है और मानवीय मूल्यों का सृजन भी करती है। आज के लोग भौतिकवादी हो गए हैं, जिन्हें शिक्षा तनावग्रस्त भी प्रदान करती है। आशा है नई शिक्षा नीति बेहतर साबित होगी।
सम्मानित अतिथि के रूप में डा अजीत कुमार चौधरी ने कहा कि शिक्षक को राष्ट्र निर्माता तथा छात्रों को राष्ट्र का भविष्य कहा जाता है। समाज की सुख- समृद्धि एवं राष्ट्र के उत्तरोत्तर विकास में शिक्षा- व्यवस्था की अहम भूमिका होती है। वर्तमान शिक्षा पद्धति में छात्रों में सेवाभाव व अनुशासन का अभाव दिख रहा है। नई शिक्षा नीति में शिक्षा के महत्व को स्वीकार कर देश की जरूरत और परिस्थिति के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था की गई है, जिसका लाभ पूरे समाज को मिलेगा।
अध्यक्षीय संबोधन में प्रो अजीत कुमार सिंह ने कहा कि प्राचीन भारत की शिक्षा- व्यवस्था समकालीन शिक्षा- व्यवस्था से समुन्नत एवं उत्कृष्ट थी। नालंदा, विक्रमशिला व तक्षशिला विश्वविद्यालय इसके उदाहरण हैं, जहां देश ही नहीं विदेशों से भी छात्र पढ़ने आते थे। कालांतर में शिक्षा व्यवस्था का ह्रास हुआ। विदेशियों के आक्रमणों से अपने संक्रमण काल में भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नई चुनौतियों व समस्याओं का सामना करना पड़ा, परंतु आज वर्तमान सरकार की नीतियों के कारण पुनः शिक्षा व्यवस्था समुन्नति की ओर तीव्र गति से अग्रसर है।
समारोह में विभिन्न विद्यालयों एवं महाविद्यालयों से आए हुए 150 से अधिक शिक्षक- शिक्षिकाओं को अटल शिक्षक सम्मान 2022 के तहत इंजीनियर देव सिंह द्वारा उपलब्ध प्रमाण पत्र एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।
समारोह का प्रारंभ अतिथियों द्वारा सामूहिक रूप से दीप प्रज्ज्वलन से हुआ, जबकि स्वागतगान आस्था निगम, मानसी प्रिया एवं कल्पना कुमारी ने प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत पाग-चादर एवं पुष्पगुच्छ से एजुकेशन सॉल्यूशन फॉर यू, दरभंगा के निदेशक देव सिंह के द्वारा किया गया।
डा अजीत कुमार चौधरी के सफल संचालन में आयोजित समारोह में अतिथियों का स्वागत संस्कृत विश्वविद्यालय के भू संपदा पदाधिकारी प्रो उमेश झा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो आई सी वर्मा ने किया।


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