मुलायम सिंह की अंतिम यात्रा, पार्थिव शरीर के साथ अखिलेश और बाबा रामदेव मौजूद
मुलायम सिंह की अंतिम यात्रा, पार्थिव शरीर के साथ अखिलेश और बाबा रामदेव मौजूद
Mulayam Singh Yadav Funeral Updates: मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया था. 82 साल की उम्र में उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली थी. मुलायम सिंह यादव के पार्थिव शरीर को सोमवार को गुरुग्राम से सैफई ले जाया गया था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सैफई में उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे.
समाजवादी पार्टी के संरक्षक और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का आज दोपहर बाद उनके पैतृक गांव सैफई में अंतिम संस्कार होगा. उनके पार्थिव शरीर को सुबह 10 बजे से अंतिम दर्शन के लिए सैफई मेला ग्राउंड के पंडाल में रखा जाएगा. करीब 3.30 बजे राजकीय सम्मान से उनका अंतिम संस्कार होगा. सैफई में इसके लिए प्रशासन और मुलायम सिंह यादव के परिवार ने पूरी तैयारियां भी कर ली हैं. मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया था. 82 साल की उम्र में उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली थी.
गठबंधन की राजनीति में माहिर थे मुलायम
मुलायम सिंह गठबंधन की राजनीति में माहिर थे. उन्होंने शुरुआती दौर में लोकदल, जनता दल और चौधरी चरण सिंह, अजीत सिंह, वीपी सिंह, चंद्रशेखर जैसे नेताओं के साथ बखूबी सियासी तालमेल बिठाया.1989 में वो कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे. फिर कमंडल की राजनीति के काट में दलित नेता कांशीराम और बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ हाथ मिलाकर 1993 में दोबारा सरकार बनाई. ये उनका राजनीतिक चातुर्य ही था, जब उन्होंने धुर विरोधी कल्याण सिंह से भी हाथ मिलाया.
लेकिन अखिलेश में गठबंधन को लेकर परिपक्वता नहीं दिखाई दी. पहले यूपी के लड़के के नारे के साथ कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और हार के साथ अलायंस तोड़ दिया. फिर लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा के साथ जोड़ी बनाई,लेकिन बुआ-बबुआ के गठजोड़ को बचाने की कोई कोशिश नहीं की. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में उन्होंने आरएलडी का साथ लिया, लेकिन निषाद समाज जैसे छोटे दलों को साथ नहीं ला पाए.
परिवार में सुलह समझौते में नाकाम
मुलायम सिंह ने परिवार की राजनीतिक महात्वाकांक्षा को भी दबाया नहीं. छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ही नहीं बल्कि प्रतीक यादव, धर्मेंद्र यादव, राम गोपाल यादव, अपर्णा यादव और अन्य रिश्तेदारों को आगे बढ़ाने में गुरेज नहीं किया. लेकिन अखिलेश ने परिवार को एकजुट रखने के लिए किसी तरह की कुर्बानी देने से परहेज ही किया.
2011-12 में वो मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष में से एक भी पद छोड़ने को राजी नहीं हुए. सार्वजनिक सभा में पिता से माइक छीन लेने की घटना भी खूब चर्चित रही. 2022 के चुनाव में हार के बाद शिवपाल को उन्होंने हाशिये पर डालने में देर नहीं की.
संकट की घड़ी में अपनों को साथ नहीं
अखिलेश पर यह भी तोहमत लगती रही है कि उन्होंने संकट की घड़ी में सपा के दिग्गज नेता आजम खां और अन्य नेताओं का साथ नहीं दिया. आजम खां के मामले में वो सड़क पर नहीं उतरे. उनसे जेल में मिलने नहीं गए. हाल ही में वो आजमगढ़ और रामपुर में लोकसभा उपचुनाव में प्रचार करने तक नहीं गए.
एसी रूम वाली पॉलिटिक्स
मुलायम सिंह हमेशा ही सड़क पर संघर्ष कर सत्ता के शिखर तक पहुंचे. अपने अनुयायियों को भी नेताजी हमेशा यही सीख देते रहे. लेकिन अखिलेश पर एसी रूम की पॉलिटिक्स का आरोप लगता रहा है. उनका जनता से जुड़े मुद्दों पर विरोध प्रतीकात्मक रहा है.
नगर निकाय चुनाव पहली परीक्षा
उत्तर प्रदेश में अगले माह नगर निकाय चुनाव होने हैं. ऐसे में नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत के चुनाव अखिलेश यादव के समक्ष पहली चुनौती होंगे, जब सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का निधन हो चुका है.
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