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Bihar Politics: कुढ़नी का किला: किसके लिए कील और किसके लिए फूल? परिणाम आज

Bihar Politics : कुढ़नी की जनता ने किसे जीत का सेहरा पहनाया है; इससे पर्दा 8 दिसंबर की दोपहर तक उठ जाएगा.

पटना/मुजफ्फरपुर. लोकसभा चुनाव के पहले कुढ़नी विधान सभा उपचुनाव को बिहार की राजनीति में सेमीफाइनल माना जा रहा है. यही वजह है कि इस चुनाव को अपने पाले में करने के लिए तमाम सियासी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी थी.

दरअसल, इन दलों को भी पता है कि कुढ़नी का चुनाव परिणाम आनेवाले समय में सियासी समीकरण बनाने में बेहद मददगार हो सकती है कि कौन से समीकरणों और मोर्चे पर ज्यादा काम करना है; या फिर किस पाले को मजबूती से पकड़ कर रखना है.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे कुढ़नी विधान सभा उपचुनाव को बिहार के सियासत के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं. वे कहते हैं, ये चुनाव सरकार लड़ रही थी. खासकर नीतीश कुमार ने ये सीट राजद से मांग कर लड़ी है, वो भी तब जब ये सीट राजद के पास थी.

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इस वजह से भी जदयू के लिए ये सीट महागठबंधन से ज्यादा जदयू के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है. यही वजह है कि जदयू के तमाम शीर्ष नेताओं ने कुढ़नी में जीत के लिए दिन रात मेहनत की है. खुद ललन सिंह ने कुढ़नी में कैंप किया था. इसके साथ ही चुनाव प्रचार के आखिरी दिन महागठबंधन के तमाम बड़े नेता भी कुढ़नी में मौजूद थे.

अरुण पांडे कहते हैं, गोपालगंज और मोकामा उपचुनाव में बीजेपी और राजद ने अपनी सीट बचा ली थी. अब जदयू के सामने चुनौती है कि वो कुढ़नी सीट कैसे बचाती है. कुढ़नी चुनाव अगर जदयू जीत जाती है तो आनेवाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए परेशानी बढ़ सकती है. यह इसलिए कि, बिहार में बीजेपी की नजर चालीस लोकसभा सीटों पर है.

जब पिछली बार जदयू के साथ मिलकर 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन, कुढ़नी में हार के बाद महागठबंधन पूरी ताकत से लोकसभा चुनाव लड़ेगा और बीजेपी को कड़ी टक्कर देगा. वहीं, अगर बीजेपी जीत जाती है तो उसका मनोबल भी काफी बढ़ जाएगा. इसका यह भी एक कारण है कि भाजपा नीतीश कुमार के साेय से बाहर निकलकर लोकसभा चुनाव लड़ेगी.


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