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रेसलर बेटी : बेटी को रेसलर बनाने वाले मुकेश की कहानी, ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के’ डॉयलाग ने डाला इतना असर कि घर में खुदवा दिया अखाड़ा

रेसलर बेटी :म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के’ इस डॉयलाग ने बेगूसराय के मुकेश पर इतना असर डाला कि उन्होंने अपने घर पर अखाड़ा खुदवा दिया और दोनों बेटियों को कुश्ती के दाव सिखाने लगे. आज उनकी दोनों बेटियां शालिनी और निर्जला कुश्ती में बड़ा मुकाम हासिल कर चुकी हैं. दोनों ने राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं.

रेसलर बेटी :आज महिला दिवस (Women’s Day ) है और आज इस कथन का महत्व और बढ़ जाता है कि एक अच्छे पुरुष की सफलता के पीछे एक अच्छी महिला का हाथ होता है. लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं दो सफल बेटियों के पीछे उसके पिता के होने की कहानी. 2016 में प्रदर्शित ‘दंगल’ फिल्म में अभिनेता आमिर खान के डॉयलाग- ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के’ ने बेगूसराय के बखरी के मुकेश पर इस कदर असर डाला कि उसने अपनी दोनों बेटियों को पहलवान बनाने की ठान ली. इसके बाद मुकेश ने अपने घर के सामने ही अखाड़ा खुदवा दिया. अपनी दोनों बेटियों को पहलवान बनाने की ठान लेने के बाद मुकेश ने न केवल घर में अखाड़ा बनाया बल्कि खुद कोच बन शालिनी और निर्जला को कुश्ती के दाव पेंच सिखाने लगे. आज उनकी बेटियां कुश्ती में अच्छा कर रही है. कई कुश्ती प्रतियोगिता में उन्होंने पदक अपने नाम किए हैं. अब शालिनी और निर्जला के पिता मुकेश अरमान है कि उनकी दोनों बेटियों का एडमिशन जेएसडब्ल्यू या किसी दूसरे बड़े प्रशिक्षण संस्थान में हो जाए जिससे उनकी खेल और तकनीक में निखार आए और उनकी ये बेटियां बिहार और देश का नाम रोशन कर सकें.

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नेशनल प्रतियोगिता में स्वर्ण जीतने में पाई कामयाबी

शालिनी और निर्जला की बेगूसराय के बखरी के सलोना गांव में घर के अहाते से शुरू हुआ कुश्ती का यह सफर कई स्टेट नेशनल प्रतियोगिता तक पहुंच गया है. दोनों बहनों ने कई प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन कर पदक अपने नाम करने में कामयाब हुई हैं. शालिनी ने हरियाणा के सोनीपत और निर्जला ने यूपी के मेरठ में हुई राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किया है. दोनों बहनें तकरीबन 6 से ज्यादा राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर हुई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है और अपने प्रतिद्वंदी को पटखनी दी है.

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सही प्रशिक्षण नहीं मिलने से खेल हो रहा प्रभावित

लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से दोनों बहनों को ना तो सही खुराक मिल रहा है और ना ही खेल के लिए उचित प्रशिक्षण. इस वजह से उनका खेल प्रभावित हो रहा है. अब दोनों बहनों की सरकार से मांग है कि अगर सरकार की तरफ से मदद हो और उनका एडमिशन जेएसडब्ल्यू एकेडमी में हो जाए तो फिर वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाने में कामयाब होंगी. दोनों बहनों का कहना है कि उनका सपना है कि ओलंपिक में मेडल जीते और अपने पिता और देश के सपनों को साकार करें

source:tv9hindi.com


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