
हिंदी समाहार मंच द्वारा शंभू अगेही की मनाई गई जयंती
दरभंगा नगर।साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था हिन्दी समाहार मंच, दरभंगा की ओर से साहित्यकार शंभु अगेही की 83 वीं जयन्ती समारोह का आयोजन अरूण कुमार वर्मा की अध्यक्षता में किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ बहुभाषाविद शंभु अगेही के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। इस अवसर पर अवकाश प्राप्त शिक्षक, वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रेश ने कहा कि-शंभु अगेही जनवादी साहित्यकार थे।
उनमें मुलतः समत्ववादी भाव प्रवाहित था।वे मूलतः और प्रधानतः कवि थे। उन्होंने दर्शन व बिचार को अपने भावनाओ में समेटे वे बहुविधावादी रचनाकार थे।वरिष्ठ पत्रकार अमरेश्वरी चरण सिन्हा ने कहा कि उनके साहित्य में जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद, और दिनकर के साहित्य का दर्शन होते है।उन्होंने साहित्य सृजन के साथ साथ ऐतिहासिक कृति भी लिखा।
डॉ सतीश चंद्र भगत ने कहा कि बहुभाषी वरिष्ठ साहित्यकार शंभु अगेही जी का वह चित्र आ जाता है कि चाहे आकाश से बरसे आग या कि ठंडक से थर थर कांपते हाड़, निरंतर उनकी कलम चलती रही।

वहीं मौके पर भारती रंजन ने कहा कि मुझे उनके सानिध्य का अवसर तो प्राप्त नहीं हुआ परन्तु उनके पुत्र अमिताभ कुमार सिन्हा उनके अप्रकाशित साहित्य को प्रत्येक वर्ष उनके पुण्य तिथि पर प्रकाशन कर मुझ जैसे साहित्यकारों का दिग्दर्शन कराते है।शेखर कुमार श्रीवास्तव ने श्रद्धा सुमन निवेदित करते हुए कहा कि-वे एक ॠषि थे। साहित्य संत थे।
साहित्य संसार सशक्त शब्द शिल्पी थे। डॉ विश्वनाथ ठाकुर ने कहा कि वे साहित्यकार, शिक्षक और समाजसेवी के रूप में सदैव याद किये जायेंगे। वहीं आशीष अकिंचन की कविता- सुनो कविता, जब कभी चौथा स्तंभ लड़खड़ाये या फिर चाटुकारिता में बिक जाय एवं डॉ रामचंद्र पासवान ने कविता- क्या भरोसा है इस जिन्दगी का , साथ देती नहीं यह किसी का प्रासंगिक रचना सुनाकर साहित्यकार शंभु अगेही के प्रति श्रद्धा निवेदित किया। अध्यक्षीय संबोधन देते हुए कहा कि वे भारतीय सभ्यता व संस्कृति के प्रतिमूर्ति थे।
वे बज्जिका में ओझराएल-डीह लिख कर अमर हो गए।कार्यक्रम का संचालन व स्वागत करते हुए सचिव अमिताभ कुमार सिन्हा ने कहा कि-अब तक उनकी पच्चीस से अधिक प्रकाशित पुस्तक है। प्रत्येक वर्ष उनकी पुण्य तिथि पर 24 अगस्त को स्मृतिदिवस पर अप्रकाशित कृतियो को प्रकाशित किया जाता है।
कार्यक्रम में आनंद कुमार सिन्हा, डॉ रूपा सिन्हा आदि ने भी विचार व्यक्त किया।धन्यवाद ज्ञापन डॉ.सतीश चंद्र भगत ने किया।