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उत्तर प्रदेश चुनाव: योगी सरकार ने किसानों के लिए बीते पांच साल में कैसा किया काम

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है कि 2017 में राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद विभिन्न मानकों पर कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन पहले से काफ़ी बेहतर हुआ है.


हालांकि अभी से कुछ हफ़्ते पहले तक राज्य में, ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई मांगों को लेकर हज़ारों किसान क़रीब साल भर से सड़क पर आंदोलन कर रहे थे.

सरकार की ओर से कुछ फ़ैसले लिए जाने और कुछ आश्वासन मिलने के बाद फ़िलहाल यह आंदोलन थम गया है.

इसलिए योगी सरकार के दावों और किसानों की चिंताओं को देखते हुए बीबीसी ने इस रिपोर्ट में कृषि को लेकर सरकार के तीन बड़े दावों की पड़ताल की है.

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पहला दावा: “हम सब जानते हैं कि 2014 से पहले किसान आत्महत्या करने को मजबूर थे. लाखों किसानों ने आत्महत्या कर ली.हालांकि 2014 के बाद, सरकार द्वारा किसान समर्थक नीतियां लागू करने के नतीज़े आप देख सकते हैं.”

फ़ैक्ट-चेक: 2014 के बाद से देश और उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्या के मामले में ख़ासी कमी आई है.

वैसे यह दावा योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में किसानों के एक कार्यक्रम में किया था. जनवरी में आयोजित एक रैली में उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य में किसानों की आत्महत्या के लिए पहले की सरकारें ज़िम्मेदार थीं.

हालांकि आत्महत्याओं में ये कमी तब हुई, जब 2014 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने डेटा कलेक्शन के तरीक़ों में बदलाव कर दिया.

एनसीआरबी ने अब खेती से जुड़े लोगों की आत्महत्याओं के मामलों को ‘किसान’ और ‘खेतिहर मज़दूर’, इन दो अलग-अलग समूहों में दर्ज़ करना शुरू कर दिया है. वहीं जिन किसानों के पास ज़मीन का कोई मालिकाना हक़ नहीं है, वे अभी तक इन आंकड़ों का हिस्सा नहीं बनते.

एनसीआरबी के अनुसार, ‘किसान’ वे हैं जो खेतों में काम करने के साथ ही खेती करने के लिए मज़दूरों को भी काम पर रखते हों. इस तरह किसान की नई परिभाषा से ‘खेतिहर मज़दूर’ और ‘भूमिहीन श्रमिक’ बाहर हो गए.

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एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में खेती से जुड़े लोगों के आत्महत्या करने के मामले 2012 और 2013 में लगभग 745 और 750 थे. 2014 के बाद आत्महत्याओं के ये मामले 100 से भी कम हो गए. वहीं 2017 में 110 और 2019 में 108 लोगों ने आत्महत्या की.

देश भर की बात करें तो 2013 में 11,774 ‘किसानों’ ने आत्महत्या की थी. वहीं 2014 में नए तरीक़े से वर्गीकरण होने के बाद ‘किसानों’ की आत्महत्याओं के मामले घटकर महज 5,650 रह गए, जबकि खेती से जुड़े 12,360 लोगों ने उस साल आत्महत्या की थी.

वैसे किसानों की आत्महत्याओं की मुख्य वजह अभी भी कर्ज़ का बोझ, घरेलू समस्याएं और फसल की बर्बादी है.

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दूसरा दावा:“बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के दस सालों के शासन में राज्य का चीनी उत्पादन 64 लाख था. लेकिन बीजेपी के 5 सालों के शासन में चीनी का सालाना उत्पादन बढ़कर अब 116 लाख टन हो गया.”

फ़ैक्ट-चेक: योगी आदित्यनाथ ने अपने पांच साल के शासन की उपलब्धियों को बताने वाले एक प्रेस बयान में यह दावा किया था. वैसे यह सच है कि उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन इसमें 2017 के पहले से ही लगातार वृद्धि हो रही थी.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ शुगर रिसर्च और उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में जब (2007-08 से लेकर 2016-17 तक) बसपा और सपा का शासन था, तब चीनी का औसतन सालाना उत्पादन 60 लाख टन रहा था.

हालांकि 2017 के बाद से चीनी का सालाना उत्पादन 100 लाख टन के ऊपर रहा है. वैसे इन आंकड़ों में हर साल थोड़ा उतार-चढ़ाव होता रहा है. अभी तक 2021-22 सीज़न के अंतिम आंकड़े नहीं आए हैं. फ़िलहाल उत्तर प्रदेश देश में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है.

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तीसरा दावा: “2017 में जब हम सत्ता में आए थे तो अपनी पहली ही कैबिनेट मीटिंग में हमने 86 लाख किसानों का 36 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ा माफ़ कर दिया था. ऐसा करने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य था.”

फ़ैक्ट-चेक: यह बयान भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजधानी लखनऊ में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान दिया था. कर्ज़ तो माफ हुआ लेकिन 86 लाख किसानों का नहीं. वहीं कर्ज़ माफ़ी की घोषणा करने वाला उत्तर प्रदेश देश का पहला राज्य भी नहीं है.

2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में घोषणा की गई थी कि लगभग 86 लाख किसानों के क़रीब 36 हज़ार करोड़ रुपए के कृषि लोन माफ़ कर दिए जाएंगे.

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2020 तक के सबसे ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि लगभग 44 लाख किसानों के 25 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक के लोन माफ़ किए गए हैं.

हालांकि मार्च 2021 तक देश में सबसे अधिक बक़ाया कृषि लोन उत्तर प्रदेश में ही है. उसके तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक बक़ाया कृषि लोन हैं.

वहीं केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2012-2013 में उत्तर प्रदेश में 79 हज़ार कृषक परिवार कर्ज़ में डूबे थे. राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के एक साल बाद यानी 2018-2019 में यह संख्या थोड़ी घटकर 74 हज़ार हो गई थी.

सरकार का यह दावा भी ग़लत है कि किसानों के कर्ज़ माफ़ करने वाला पहला राज्य उत्तर प्रदेश है. उससे पहले आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों ने 2014 और 2016 में कृषि लोन को माफ़ सफलतापूर्वक माफ़ कर दिया था.


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