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उत्तराखण्ड

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, उत्तराखंड या किसी अन्य राज्य में ये कैसे लागू हो सकता है

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, उत्तराखंड या किसी अन्य राज्य में ये कैसे लागू हो सकता है


उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए एक कदम आगे बढ़ा दिया है. उसने इसका विधेयक लाने के लिए एक कमेटी बना दी है. अगर ये कानून उत्तराखंड में आय़ा और लागू हो गया तो देश में ऐसा करने वाला गोवा के बाद दूसरा राज्य होगा. जानते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है. क्या राज्य इसे सीधे लागू कर सकते हैं.

उत्तराखंड में चुनाव जीतने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कैबिनेट मीटिंग के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक कमेटी बनाई है, जो इसके प्रावधान और बिल का मसौदा तैयार करेगी. वैसे देश में गोवा अकेला राज्य है, जहां ये कानून लागू है. हमारे संविधान में इसे लागू करने की व्यवस्था तो है लेकिन ना तो देश और ना ही अन्य राज्यों में ये कानून लागू है.

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हालांकि समय समय पर देश में इसको लागू करने की मांग होती रही है. बीजेपी के अंदर से कई पार्टी स्तर पर इसे लागू करने की मांग हो चुकी है. वस्तुस्थिति ये भी है कि वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल भी किया था.

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वहीं उत्तराखंड में भी चुनाव से पहले मुख्यमंत्री धामी ने कहा था कि अगर वो चुनाव जीतकर सत्ता में आए तो इस कानून को लागू करेंगे. अब उन्होंने इसी दिशा में पहल की है. ये जानना भी दिलचस्प है कि क्या देश का कोई भी राज्य इस कानून को पास कर सकता है.

क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एक जैसी स्थिति प्रदान करती है. इसका पालन धर्म से परे सभी के लिए जरूरी होता है.

क्या संविधान में इसका प्रावधान है
हां, संविधान के अनुच्छेद 44 कहता है कि शासन भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा. अनुच्छेद-44 संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में एक है. यानि कोई भी राज्य अगर चाहे तो इसको लागू कर सकता है. संविधान उसको इसकी इजाजत देता है.

अनुच्छेद-37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक प्रावधानों को कोर्ट में बदला नहीं जा सकता लेकिन इसमें जो व्यवस्था की जाएगी वो सुशासन व्यवस्था की प्रवृत्ति के अनुकूल होने चाहिए.

देश में समान नागरिक संहिता क्या लागू है
देश में ये कानून कुछ मामलों में लागू है लेकिन कुछ में नहीं. भारतीय अनुबंध अधिनियम, नागरिक प्रक्रिया संहिता, माल बिक्री अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, भागीदारी अधिनियम, साक्ष्य अधिनियम आदि में समान नागरिक संहिता लागू है लेकिन विवाह, तलाक और विरासत जैसी बातों में इसका निर्धारण पर्सनल लॉ या धार्मिक संहिता के आधार पर करने का प्रावधान है.

ये कानून भारत में कब पहली बार आया
समान नागरिक संहिता की शुरुआत ब्रितानी राज के तहत भारत में हुई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून की संहिता में एकरूपता लाने की जरूरत की बात कही थी. हालांकि इस रिपोर्ट ने तब हिंदू और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इससे बाहर रखने की सिफारिश की थी.

फिलहाल क्या स्थिति है
ब्रिटिश शासन में जो व्यवस्था थी, उसमें बदलाव किया जा चुका है. वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये बी.एन. राव समिति का गठन किया गया. जिसकी सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए उत्तराधिकार, संपत्ति और तलाक से संबंधित कानून को संशोधित करके वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तौर पर नया कानून बनाया गया. हालांकि मुस्लिम, इसाई और पारसी धर्म के लोगों के लिए अलग व्यक्तिगत कानून बरकरार रहे.

समान नागरिक संहिता की मांग क्यों होती रही है
– ताकि समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण मिल सके
– महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा मिल सके
– कानूनों की एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को बल मिलेगा
– कानूनों का सरलीकरण होगा
– समान संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों के लिए अलग अलग कानून नहीं होकर एकजैसे कानून होंगे.

क्या इसका धर्मनिरपेक्षता से भी कोई संबंध है
भारतीय संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द की मूलभावना निहित है. एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर अलग अलग कानूनों की बजाए सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिए.
अगर समान नागरिक संहिता को लागू हो जाएगा तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, इससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या भी खत्म हो सकेगी.

इस पर आपत्तियां क्या हैं
– विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिक राजनीति के तौर पर की जाती है
– समाज का एक बड़े वर्ग को लगता है कि इस सामाजिक सुधार की आड़ में बहुसंख्यकवाद का ही भला ज्यादा होगा
– भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, वो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है.

ये केवल गोवा में कैसे लागू है
दरअसल गोवा में वहां की आजादी से पहले पुर्तगाली सिविल कोड 1867 से लागू था. जब गोवा आजाद हुआ तो ये एक्ट वहां जारी रहा. जिसे अब यूनिफॉर्म सिविल कोड के तौर पर जानते हैं. हालांकि गोवा की समान नागरिक संहिता ना तो जटिल है और इसके कड़े प्रावधान. बल्कि ये हिंदुओं को कुछ स्थितियों में बहुविवाह की अनुमति देता है. ये प्रावधान गोवा में पैदा हुए हिंदुओं के लिए लागू होगा. इसके अनुसार
– 25 साल की उम्र तक अगर पत्नी से कोई संतान नहीं हो तो पति दूसरी शादी कर सकता है
– 30 साल की उम्र तक अगर पत्नी पुत्र को जन्म नहीं दे पाती तो भी पति दूसरी शादी कर सकता है

क्या कोई भी राज्य इसे लागू कर सकता है
हां, चूंकि संविधान में इसे राज्य का विषय बताया गया है, लिहाजा राज्य इसे चाहें तो अपने यहां लागू कर सकते हैं. बशर्ते इस बिल को राज्य की विधानसभा दो-तिहाई बहुमत से पास कर दे. इसके बाद राज्यपाल के पास इसे भेजा जाता है, जिसमें उनके हस्ताक्षर जरूरी होते हैं. हालांकि राज्य के कुछ कानूनों को कई बार राष्ट्रपति के पास भी मंजूरी के लिए भेजा जाता है.

स्रोत: “News18”


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