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राष्ट्रीय

जब 90,000 पाक सैनिकों ने घुटने टेके:मेजर जनरल जैकब ने सरेंडर के पेपर देकर 30 मिनट का अल्टीमेटम दिया

जब 90,000 पाक सैनिकों ने घुटने टेके:मेजर जनरल जैकब ने सरेंडर के पेपर देकर 30 मिनट का अल्टीमेटम दिया; जनरल नियाजी रो पड़े

तारीख थी 16 दिसंबर 1971। आज से ठीक 51 साल पहले। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने दफ्तर में एक टीवी चैनल को इंटरव्यू दे रही थीं। उनका फोन बजा। इस तरफ से इंदिरा गांधी ने कहा- यस.. यस…ओके…थैंक्यू। उन्होंने इंटरव्यू ले रहे शख्स से माफी मांगी और संसद की तरफ बढ़ गईं। संसद से ऐलान किया, ‘पूर्वी पाकिस्तान की फौज ने बांग्लादेश के सामने बिना शर्त सरेंडर कर दिया है। अब से ढ़ाका एक आजाद देश की आजाद राजधानी है।’

इंदिरा गांधी को जिस शख्स ने फोन किया था, वो थे इंडियन आर्मी की कमान संभाल रहे जनरल सैम मानेकशॉ। वही मानेकशॉ, जिन्होंने इंदिरा गांधी से कहा था, ‘अमेरिका परमाणु हमला कर दे तब मैं कुछ नहीं कर सकता, वरना युद्ध तो हम ही जीतेंगे।’

इस युद्ध में भारत की मदद से एक नए लोकतंत्र का उदय हुआ और दुनिया के नक्शे पर एक नया देश बना- बांग्लादेश

आज इस घटना को 51 साल पूरे हो चुके हैं। हम आपको सुना रहे हैं पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों के सरेंडर का रोचक किस्सा…

एकदम शुरुआत में चलते हैं। साल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पाकिस्तान दो हिस्से में बंटा। पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान। अब स्थिति ये थी कि संसाधन और सरकार के लिहाज से पश्चिमी पाकिस्तान कुछ ज्यादा ही समृद्ध था। दोनों हिस्सों की भाषा भी अलग थी।

राजनीतिक नेतृत्व के लिहाज से भी पूर्वी पाकिस्तान कटा-कटा ही महसूस करता था। धीरे-धीरे पूर्वी पाकिस्तान में ये नाराजगी बढ़ती ही रही और फिर एक नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग नाम की पार्टी बनाई और पाकिस्तान के अंदर स्वायत्तता की मांग कर दी।

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1970 के आम चुनाव में पूर्वी हिस्से में इनकी पार्टी ने भारी जीत दर्ज की। उनके दल के पास संसद में बहुमत था लेकिन बजाय इसके कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाता, पाकिस्तान की मौजूदा सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। यह घटना और सालों का असंतोष गृह युद्ध का कारण बनी।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति याहया खान ने वहां जनरल टिक्का सिंह को भेजा लेकिन उनकी अगुआई में मामला और बिगड़ गया। मार्च 1971 में भयंकर नरसंहार हुआ। सेना के अत्याचार से स्थानीयों में रोष व्याप्त हुआ और उन्होंने अपनी बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी नाम की सेना बना ली। पाकिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया। यहां पाकिस्तान ने एक गलती कर दी। अपने घर की इस लड़ाई के बीच पाकिस्तान ने भारत पर भी आक्रमण कर दिया।

3 दिसंबर की शाम का वक्त था। पाकिस्तान ने भारत के आधा दर्जन से ज्यादा एयरपोर्ट्स पर अचानक बमबारी शुरू कर दी। फिर क्या था भारतीय सेना ने भी एक साथ दो तरफ से धावा बोला। सबसे पहले कराची के नेवी बेस को उड़ाया और बांग्लादेश में दाखिल हो गई।

युद्ध हुआ और पाकिस्तान को इसका अंदाजा भी नहीं था कि 15 दिसंबर तक मात्र 13 दिन के भीतर भारतीय सैनिक बांग्लादेश की राजधानी ढ़ाका तक आ जाएंगे। हालांकि, जब भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ढ़ाका के पास पहुंची तो उसमें मात्र 3000 सैनिक थे। इसी वक्त ढ़ाका को घेर कर खड़े पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या थी 26 हजार 400। व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो स्थिति थोड़ी चिंताजनक थी, लेकिन सेना के सूझबूझ से जीत संभव हो गई। हुआ ये कि दिल्ली से जारी हुई पैराड्रॉप की एक तस्वीर ने सारा गेम पलट कर रख दिया।

क्या है नकली पैराशूट की कहानी

भारत की सेना ढ़ाका की तरफ गांवों के रास्ते बढ़ रही थी। 7 दिसंबर को बांग्लादेश के दो इलाके जेसोर और सियालहट को पाकिस्तानी सेना से आजाद करा लिया। उस वक्त भारत के सैनिकों की संख्या पाकिस्तान से कम थी। सेना आगे बढ़ी तो पाकिस्तानी सेना ने ढ़ाका की ओर से मोर्चा खोलने की तैयारी शुरू कर दी। इसी बीच एक पुरानी फोटो के गलत प्रयोग ने भारत के लिए मदद की राह खोल दी।

दरअसल उस वक्त भारत की मदद के लिए कोलकाता से कुछ जवानों को पैराड्रॉप कराया गया। पैराड्रॉप यानी सेना के जवानों और युद्ध सामग्री को पैराशूट के सहारे लैंड कराना। तो भारत के जवान और हथियार बांग्लादेश में लैंड हो रहे थे। इसी बीच कन्फ्यूज करने के लिए डमी पैराशूट भी उतार दिए गए। युद्ध में अमेरीका और UN के हस्तक्षेप के बाद मामला अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के संज्ञान में आना ही था। दुनिया भर में खबर छपी कि भारत ने ढ़ाका में कब्जा करने के मंसूबे से भारी मात्रा में जवान उतार दिए हैं।

सच्चाई ये कि पैराड्रॉप के दौरान की कोई तस्वीर है ही नहीं। वो फोटो जो छपी, भारतीय वायुसेना के प्रेस की जिम्मेदारी निभा रहे शख्स ने जारी कर दी थी। कमाल तो ये कि वो फोटो साल भर पहले हुई किसी ट्रेनिंग के दौरान की थी। पाकिस्तान के आलाकमान के मन में इस बात का डर बैठ गया कि भारत ने सेना उतार दी है। इस तस्वीर का जिक्र पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने युद्ध के बाद भी किया।

भारत के सामने पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों के सरेंडर का दिन…

16 दिसंबर 1971। सुबह 9 बजकर 15 मिनट। जनरल जैकब को दिल्ली से जनरल मानेक शॉ का मैसेज मिला। मैसेज था आत्मसमर्पण की तैयारी कराने ढ़ाका जाओ। 16 की दोपहर तक मेजर जनरल जैकब सेरेंडर के एग्रीमेंट का ड्राफ्ट लेकर ढ़ाका पहुंचे। एयरपोर्ट पर UN के प्रतिनिधि मौजूद थे। जैकब उन्हें नजर अंदाज करके आगे बढ़ गए।

जैकब जब पाकिस्तानी सेना के लीडर जनरल नियाजी के सामने पहुंचे तब नियाजी कुछ अधिकारियों के साथ सोफे पर बैठे थे और वहां भद्दे चुटकुलों पर हंसी मजाक चल रहा था। जनरल जैकब ने घुसते ही माहौल अपने पक्ष में किया। वहां बैठे एक अन्य भारतीय मेजर जनरल नागरा को लगभग निर्देश देते हुए कहा कि वो एक मेज और दो कुर्सियों की व्यवस्था करें, अब सरेंडर का समय आ गया है। जनरल जैकब ने नियाजी के सामने सेरेंडर एग्रीमेंट पढ़ दिया।

ये सुनते ही जनरल नियाजी ने कहा, ‘किसने कहा कि मैं सरेंडर कर रहा हूं? आप तो यहां बस सीजफायर की शर्तों और सेना वापसी पर बात करने आए हैं।’

इसके बाद जनरल जैकब ने नियाजी को किनारे ले जाकर समझाया। कहा, ‘अगर समर्पण नहीं करते तो मैं तुम्हारे परिजनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकता। हथियार डालने पर ही मैं सुनिश्चित कर पाउंगा कि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे। मैं तीस मिनट का समय दे रहा हूं। नहीं मानें तो मैं ढ़ाका पर बमबारी का आदेश दे दूंगा।’

मन में तनाव, लेकिन चेहरे पर सादा भाव

अपनी आत्मकथा ‘एन ओडिसी इन वॉर एंड पीस’ में जनरल जैकब ने लिखा है कि नियाजी को बोलने के बाद वो बाहर आकर सिगार पीने लगे। वो कहते हैं, ‘मैं तनाव में था, जबकि पाकिस्तान की हुमूदुर्रहमान कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, कि जनरल जैकब अपना पाइप पीते हुए चहलकदमी कर रहे थे।’

बाहर 30 मिनट बिताने के बाद जब जनरल जैकब कमरे में आए तो दस्तावेज मेज पर पड़ा था। उन्होंने नियाजी से पूछा कि क्या वे इसे स्वीकार करते हैं? तीन बार लगातार पूछने के बाद जैकब ने कागज हवा में लहराते हुए कहा, इस चुप्पी को मैं मान कर चल रहा हूं कि आपने इसे स्वीकार कर लिया है।’ इसके बाद नियाजी की आंखों में आंसू थे।

जैकब ने फिर से नियाजी को किनारे ले जाकर कहा कि आत्मसमर्पण का समारोह रेसकोर्स पर आम जनता के सामने होगा। इस पर वो असहमत होते रहे फिर तैयार हो गए। इसके बाद वहां लंच करके शाम 4 बजे नियाजी के साथ जैकब, जनरल अरोड़ा को रिसीव करने ढ़ाका एयरपोर्ट पहुंचे।

93 हजार सैनिकों ने हथियार डाले

रेसकोर्स के मैदान में अरोड़ा ने पहले गार्ड ऑफ ऑनर लिया उसके बाद अरोड़ा और नियाजी मेज पर बैठ कर आत्मसमर्पण के दस्तावेजों की 5 प्रतियों पर साइन किया। कमाल तो ये कि नियाजी के पास कलम भी नहीं थी। उन्हें एक भारतीय अफसर ने अपनी कलम दी। नियाजी ने साइन किया। वर्दी पर लगे बिल्ले हटाए और अपनी रिवाल्वर निकालकर जनरल अरोड़ा को सौंप दी।

ये समारोह 15 मिनट में खत्म हो गया। इसी के साथ पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने अपने हथियार रख दिए। उस वक्त घड़ी में 4:55 मिनट हो रहे थे। इसके बाद जनरल अरोड़ा ने सूचना भिजवाई और मानेक शॉ ने देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सूचना दी। ये उसी ‘विजय दिवस’ की सूचना थी जो इंदिरा गांधी को एक इंटरव्यू के बीच में मिली थी, जिसका जिक्र हमने स्टोरी के शुरुआत में किया है।

जब युद्ध चल रहा था, पाकिस्तान के राष्ट्रपति नशे में धुत रहते थे

पाकिस्तान के हार का बड़ा कारण उसके देश की अपनी राजनीतिक स्थिति थी। प्रधानमंत्री की राष्ट्रपति से नहीं बनती थी तो राष्ट्रपति की युद्ध में गए जनरलों से। राष्ट्रपति याहया खान का हाल ये था कि वो रात 8 बजे के बाद शराब के नशे में रहते थे। वो तो इतने बदनाम थे कि सैनिक कमांडरों को निर्देश था कि रात 10 बजे के बाद उनके किसी भी मौखिक आदेश का पालन न किया जाए।

इसी बीच पाकिस्तान ने लड़ाई तो ठान ली और हालत ये हुई कि जीत के लिए चीन और अमेरिका पर निर्भर हो गया। जब चीन ने भी साथ छोड़ दिया तो राष्ट्रपति याहया खान ने प्लान दिया, ‘पूरब की रक्षा पश्चिम करेगा’। हुआ क्या?

13 दिसंबर को जब हालात हाथ से बाहर हो गए तो राष्ट्रपति याहया खान ने अमेरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को फोन किया। निक्सन मीटिंग में थे इसलिए बात नहीं हो सकी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति की युद्ध को लेकर चिंता का अंदाजा इसी बात से लगाइये कि रात 2 बजे निक्सन ने जब कॉल बैक किया तो याहया खान गहरी नींद में सो रहे थे। उन्हें जगाया गया तो भारी नींद में होने की वजह से उन्होंने अपने ADC अरशद समी खान को भी लाइन पर रहने को कहा।

निक्सन ने कहा कि वो पाकिस्तान की चिंता करते हैं और सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेज रहे हैं। अरशद समी खान ने अपनी एक किताब में इस घटना का जिक्र किया है। उन्होने लिखा है ‘याहिया ने मुझसे कहा कि मैं जनरल हामिद को फोन करूं। हामिद से बात करते हुए लगभग चिल्ला कर याहिया ने कहा, ‘हमने कर दिखाया है, अमेरिका की सेना आ रही है।

हार नहीं पचा पा रहा था पाकिस्तान

अमेरीका की तरफ से आ रहे सैनिक और सातवां बेड़ा चले तो ज़रूर लेकिन ढ़ाका फतह होने वाले दिन तक नहीं पहुंच सके। आलम ये पाकिस्तान अपनी हार भी नहीं पचा पा रहा था। पाकिस्तान के आला कमान ने अपने अवाम से ये बात आखिरी दम तक छिपाई को वो युद्ध हार चुके हैं।

हार की सूचना देने जब राष्ट्रपति याहया खान रेडियो पर आए तो बोले, ‘इस बड़ी जंग में फिलहाल पीछे हट जाने का ये मतलब नहीं है कि लड़ाई खत्म हो चुकी है, भारत के साथ लड़ाई जारी रहेगी और आखिरी फतह हमारी ही होगी।’

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