
किसानों की कौन सुनेगा फरियाद, दो साल से बाढ़ फसल डुबा रही थी, इस बार सूखे ने मार डाला, खेतों की दरार देख कर कलेजा फटता है
दरभंगा। बिहार में इस बार राज्य के अधिकतर हिस्सों में मॉनसून ने दगा दे दिया है। बारिश नहीं होने से धान की रोपनी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जहां खेतों में रोपनी हुई भी है वे धान के खेत सूखे प़े हैं। खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी हैं जिन्हें देख कर किसानों का कलेजा फट रहा है।
दरभंगा जिले में पिछले दो साल से बाढ़ फसल डुबा रही थी। इस बार सूखे ने मार डाला है। किसानों का कहना है कि सरकार अपनी कुरसी बचाने में लगी है। किसानों को देखने-सुनने वाला कोई नहीं है। किसानों ने सरकार से डीजल अनुदान और मुआवजे की मांग की है।
साथ ही पिछले तीन साल की मालगुजारी माफ करने की भी गुहार लगाई है।बुलंद दुनिया की टीम ने दरभंगा सदर प्रखंड की कबीरचक पंचायत के गढ़िया गांव में खेतों का हाल देखा और कुछ किसानों से बात की। देखें, ये ग्राउंड रिपोर्ट।
स्थानीय किसान अमरनाथ झा ने कहा कि बहुत दयनीय स्थिति में वे लोग जी रहे हैं। कर्ज लेकर उन्होंने धान की खेती की है। पैसा कहां से चुकाएंगे। उन्होंने कहा कि बारिश नहीं हो रही है। अब तक दो पटवन कर चुके हैं और तीसरी पटवन करने जा रहे हैं। तीन पटवन से क्या होने वाला है। धान के खेत में हमेशा पानी होना चाहिए।
बिन पटवन क्या होने वाला है। उन्होंने कहा कि सरकार ने डीजल अनुदान देने की घोषणा की थी लेकिन अब तक नहीं मिला। पता नहीं सरकार क्या सोच रही है। हम लोग तो दब चुके हैं। सरकार कुछ करेगी तभी कुछ होगा। कोई भी सरकारी अधिकारी या कर्मी उन्हें देखने नहीं आया कि किसान किस हाल में है।

उन्होंने कहा कि सरकार जो मुआवजा देती है वह उन तक पहुंचते-पहुंचते खत्म हो जाता है। तीन-चार बीघा धान की खेती की है। टांय-टांय फिस्स हो गया। इतनी तेज धूप होता है कि एक दिन की पटवन के बाद दूसरे ही दिन पानी सूख जाता है।
वहीं, सदर प्रखंड के पंचायत समिति सदस्य प्रतिनिधि और स्थानीय किसान बलदेव राम ने कहा कि अभी तो बारिश नहीं हो रही है। मैं बताना चाहता हूं कि इसके पहले 2020 में बाढ़ से दहा गया, 2021 में बाढ़ से दहा गया। 2022 में बारिश नहीं हो रही है। विगत तीन वर्ष से किसान परेशानी में है। किसानों के बीच में त्राहिमाम मचा हुआ है।
कोई देखने वाला नहीं है किसान को। विगत तीन वर्ष से एक चुटकी धान इस क्षेत्र में नहीं हुआ है। किसान कर्ज ले ले कर के खेती कर रहा है। सरकार द्वारा एक रुपया किसी तरह का अनुदान नहीं दिया गया है। कभी कोई घोषणा भी सरकार द्वारा की जाती है उसका प्रोसेस ऐसा लेंदी कर दिया जाता है कि किसान उसमें सकता नहीं है।
जिस किसान की तीन साल में कोई फसल नहीं हो उसमें कहिएगा कि अपटूडेट रसीद कटा कर दीजिए। कर्ज काढ़ कर धान रोपा, खाद डाला, पानी नहीं हुआ धान सूख गया। अब कहिएगा कि रसीद अपटूडेट करा कर दीजिए। किसान तो खेती में मरा हुआ है।
अब उसको कागज में भी मारिए। किसान के पास तो अब कोई रास्ता नहीं है। किसानों की समस्या को लेकर आगे बढ़ने वाला कोई नेता नहीं है। सब नेता लोग अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। सरकार को चाहिए कि तीन साल की किसानों की मालगुजारी माफ करे। तीन से तो कोई फसल हुई नहीं। सरकार मालगुजारी माफ करे और कर्ज माफ करे।
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